सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान शंख बजाने का विशेष महत्व है। शंख को मुख्यतः तब बजाया जाता हैं जब पूजा शुरू होती है, आरती पूरी होती हैं, कोई मंगल काम किया जाता है, या किसी युद्ध में विजय प्राप्त की जाती है। शंख के बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती। सनातन धर्म में शंख का इतना महत्व होने के बाद भी शंख और चक्रधारी भगवान विष्णु के मंदिर में ही नहीं बजाया जाता है। बद्रीनाथ धाम में शंख क्यों नहीं बजाया जाता आखिर क्या वजह है, जो बद्रीधाम में शंख बजाना वर्जित है।
बद्रीनाथ धाम में शंख क्यों नहीं बजाया जाता
भारत के छोटे और बड़े चारों धामों में से एक धाम है बद्रीनाथ। बद्रीनाथ उत्तराखंड के पंच बद्री में से प्रथम बद्री है। यह उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर में भगवान बद्रीनारायण की एक मीटर लंबी शालिग्राम से बनी मूर्ति स्थापित है। मान्यता है कि इसे आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में नारद कुंड से निकालकर स्थापित किया था। आस्था का बड़ा धाम होने के बावजूद भी इस मंदिर में शंख नहीं बजाया जाता। इस के पीछे धार्मिक, प्राकृतिक और वैज्ञानिक कारण हैं।
धार्मिक कारण
भगवान विष्णु ने जब शंखचूर्ण नाम के राक्षस का वध किया था, उस समय माता लक्ष्मी बद्रीनाथ धाम में तुलसी रूप में ध्यान कर रही थीं। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम को शुरू करने या समापन करने पर शंख बजाया जाता है, लेकिन भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण के वध के बाद शंख नहीं बजाया ताकि तुलसी रूप में ध्यान कर रहीं माता लक्ष्मी की एकाग्रता भंग न हो। आज भी इसी बात को ध्यान में रखते हुए बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है।
प्राकृतिक और वैज्ञानिक कारण
बद्रीनाथ धाम में बर्फबारी के समय पूरा बद्री क्षेत्र बर्फ की सफेद चादर से ढक जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर बद्री क्षेत्र में शंख बजाया जाए तो उसकी आवाज बर्फ से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा कर सकती है। इससे बर्फ में दरार पड़ सकती है और हिमस्खलन का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। इसलिए यहां शंख नहीं बजाया जाता है।
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