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कलयुग में श्राप क्यों नहीं लगता?

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक युग का अपना महत्व है। तपस्या के बिना कुछ संभव नहीं है। ब्रम्हा जी ने तपस्या से ही इस ब्रम्हांड की रचना की है जिसमे अंसख्य गृह और आकाशगंगाएं हैं। तपस्या के बिना कुछ भी सार्थक नहीं हो सकता है। तपस्या से हर चीज मुमकिन है लेकिन तपस्या हर किसी के बस की बात नहीं होती। सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग में लोग ईश्वर के प्रति समर्पित रहते थे। सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग में लोग ईश्वर के प्रति समर्पित रहते थे। इन तीनो युगों में पाप इतना भयंकर नहीं था जितना कलयुग में है। पहले के युगों में मनुष्यों को बहुत सारी सिद्धियां प्राप्त थी। उस युग में मनुष्यों के मुख से निकलने वाली बात सत्य होती थी। पहले के युगों में स्वयं भगवान अवतार लेकर दुष्टों और पापियों का सर्वनाश करते थे। उस समय ऋषि-मुनि भी अपने अपमान में किसी को भी श्राप दे दिया करते थे और उस श्राप का असर भी होता था। कलयुग में ना श्राप का महत्व रह गया है और ना ही विश्वास रह गया है। कलयुग में श्राप के बेअसर होने के पीछे के कारण धार्मिक शास्त्र में बताए गए हैं। आइये जानते हैं कि कलयुग में श्राप क्यों नहीं लगता?

कलयुग में श्राप क्यों नहीं लगता?

विष्णु पुराण में कलयुग के बारे में बताया गया है कि जैसे-जैसे समय बीतेगा, वैसे-वैसे लोग और अधिक पापी होते जाएंगे इसलिए कलयुग में किसी को भी श्राप देना अनुचित है। यह इसलिए अनुचित है क्योंकि कलयुग में कोई भी मनुष्य पूर्णतः श्रेष्ठ नहीं है। सभी मनुष्यों ने कभी ना कभी मन, ‌वचन, कर्म से किसी ना किसी को चोट पहुंचाई है। शास्त्रों के अनुसार झूठ बोलना भी पाप की श्रेणी में आता है। कलयुग में मनुष्य के कर्महीन होने के कारण उनके द्वारा कही गई बातें सच नहीं होती हैं। कर्महीन होने के कारण मनुष्य के तपोबल में कमी आई है, जिसके कारण कलयुग में किसी पर भी श्राप का असर नहीं होता है।

तपस्या के बिना कुछ संभव नहीं है। ब्रम्हा जी ने तपस्या से ही इस ब्रम्हांड की रचना की है जिसमे अंसख्य गृह और आकाशगंगाएं हैं। तपस्या के बिना कुछ भी सार्थक नहीं हो सकता है। तपस्या से हर चीज मुमकिन है लेकिन तपस्या हर किसी के बस की बात नहीं होती।

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