भगवान शंकर को मुख्यतः लिंग के रूप में पूजा जाता हैं। भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं जिसमे भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। शंकर जी को देवो का देव और कालो के काल माना जाता हैं। और कहा जाता है कि
अकाल मृत्यु वो मरे जो कार्य करे चांडाल का,
काल उसका क्या करें जो भक्त हो महाकाल का।
वैसे तो भगवान शंकर को भोले भंडारी कहा जाता हैं। ये एक मात्र ऐसे देव है जिन्हे सिर्फ एक लोटा जल चढ़ा कर ही प्रसन्न किया जा सकता हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि शिवलिंग पर जल कैसे चढ़ाएं ? चलिए जानते है :
शिवलिंग पर जल कैसे चढ़ाएं
समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला था तब संसार जो बचने के लिए उस विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया था। जिसके परिणम स्वरुप शिव जी के शरीर का तापमान बढ़ गया था। इसलिए सभी देवी देवताओं ने मिल कर शिव का जल अभिषेक किया था। तभी से शिव जी का जल अभिषेक करने की परंपरा हैं।
शिव महापुराण के अनुसार शिवलिंग पर जल चढ़ाने के कुछ नियम और विधि है:
- जब भी शिवलिंग पर जल चढ़ाये तो आपका मुख पूर्व दिशा में न हो।
- शिवलिंग पर जल अर्पित करने के लिए ताम्बा, चांदी या कांसे के पात्र का प्रयोग करे।
- आसान लगा कर बैठे और फिर जल से अभिषेक करें, कभी भी खड़े हो कर शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ाना चाहिए।
- जल चढ़ाते समय जल्दी न करे, धीरे धीरे एक धार से जल अर्पण करे।
- शिवलिंग की जलधारी के दाहिने ओर गणेश जी का स्थान माना जाता है, सर्वप्रथम गणेश जी को जल चढ़ाये।
- इसके बाद बायीं ओर भगवान कार्तिकेय जी के स्थान पर जल चढ़ाये।
- अब शंकर भगवान की पुत्री अशोकसुन्दरी पर जल चढ़ाये, इनका स्थान जलधारी के बीच में होता हैं।
- इसके बाद अब माता पार्वती के हस्तकमल की बारी आती है। जहा शिवलिंग रखी होती है वहां गोल घुमा कर जल अर्पण करे ।
- अब शिवलिंग पर जल अभिषेक करे।
महादेव आप पर अपनी कृपा बनाए रखें और आप जो भी चाहते हैं वो आपको जरूर मिले। हर हर महादेव।
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